कैसी प्रीत लगा गया
युँ आना तेरा, मन को भा गया,
गुजरा समय फिर याद आ गया।।
छुपा छुप्पी का खेल और,
रूठना दिल में समा गया।।
चला राह पर अकेला राही,
गीत तन्हाई का सुना गया।।
नाचा मोर जंगल कैसे दिखता,
उठना पलक का रूला गया।।
शिकायत करते तो क्या करते,
वोह शिकवे सारे मिटा गया।।
बन्द आँख करूं नजर तुमआते,
प्रेम रोग हमें कैसा लगा गया।।
कीमत लगाते कैसे हुस्न की,
मोल फूल का भवराँ लगा गया।।
इज़हार करते कैसे प्यार का,
सीना चीर हनुमन्त दिखा गया।।
सामने होते बात नहीं कर पाते,
कैसी प्रीत , जग्गू,तूं लगा गया।।