ग़ज़ल
सुना है उनको ज्ञान बहुत है
पर उनको अभिमान बहुत है।
तुम डर किसको दिखलाते हो
मेरी भी पहचान बहुत है।
मौत से यारा क्या डरना है
जीने का अरमान बहुत है।
बड़े हुए वो क्या हुआ
अपनी भी तो शान बहुत है।
कैसे मानूँ सफल है जीवन
बाकि अभी इम्तहान बहुत है।
बन न पाया कोई आदमी
आदमी अभि हैवान बहुत है।
कैसे जा़ऊँ उसके दर तक
अभि पैरों में थकान बहुत है।
बहुत समझाऊँ न समझे वो
वो यार मेरा नादान बहुत है।
खौफ किसी का नहीं है उसको
क्यूँ जो वो धनबान बहुत है।
कितने सुन्दर स्वर में गाये
लय तो है पर तान बहुत है।
सबके मन को मोह लेता है
बच्चा क्या ! शैतान बहुत है।
हरदम करता मेरा मेरा
ज्ञानी है अनजान बहुत है।
रोज रोज कर देता हमला
दुश्मन तो बेईमान बहुत है।
क्या खोया और क्या है पाया
चाहत में अपमान बहुत है।
क्या ले जाना इस दुनियाँ से
अंतिम बार शमशान बहुत है।
दुख में कैसै कटेगा जीवन
बस उसका इक त्राण बहुत है।
वैसे तो मैं खुश हूँ लेकिन
दिल मेरा परेशान बहुत है।
सूरत कुछ और सीरित कुछ है
चेहरे पर मुस्कान बहुत है।
बहुत वरसा समय का हंटर
मुश्किल में अब जान बहुत है।
मंज़िल तक पहुँचें न पहूँचें
रस्ता तो सुनसान बहुत है।
दण्ड से कोई बच नहीं सकता
उसका बस इक ब्यान बहुत है।
तुम मुझे चाहो न चाहो
निराश तुम्हारा ध्यान बहुत है।
सुरेश भारद्वाज निराश
धौलाधार कलोनी लोअर बड़ोल
पी ओ दाड़ी धर्मशाला हि. प्रः.
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bhut khub sr