हे निज वतन बेंचने वाले,सोचो जन जन का क्या होगा।
तोड़ प्रसून कुचलने वाले ,सोच चमन का क्या होगा।।
निज स्वारथहित परनिन्दारत,अपनीझूठी वैभव में विरत।
अब आम जनों की सोच कहाँ,जनता जीवन का क्या होगा।।
अपमानित कर अपनी संस्कृति फैलाते जन मानस विकृति।
छवि धूमिल मत कर भारत का अब सोच वतन का क्या होगा।।
मिट्टी पे आवरण पत्थर के अब क्या होगा वर्षा जल का।
सब ताल तलैया पाट रहे क्या होगानिरीह पशुधन का।।
Dr. Meena kaushal
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