कैद से माँ को खत*
माँ याद आ रहा है अपना बतन सुहाना।
कच्चे घरों की बस्ती नदिया में जा नहाना।।
दिखती थीँ दूर तक वो हरे खेतों की कतारें।
सबके घरों में होतीं दही दूध की बहारें।।
दौलत की चाह लेकर मैं सब को छोड़ आया।
अच्छा भला सा जीवन लगता है सब लुटाया।।
चारों तरफ था पानी जहाज़ बढ़ रहा था।
न जाने मन क्यों मेरा तुझे याद कर रहा था।।
था ख़ौफ़नाक मंज़र तूफान उठ रहा था।
काली घटा में सबका वहां दम सा घुट रहा था।।
इतने में हमने देखा कोई नाव आ रही थी।
लहरों में तैरती वो हिचकोले खा रही थी।।
चिंता थी मन में इतनी कुछ भी समझ न पाया।
पीछे जो मुड़ के देखा कश्ती को साथ पाया।।
लिए हाथ में बन्दूकें जहाज़ को वो थे घेरे।
हमको डरा रहे थे वे डाकू थे लुटेरे।।
बन्दूक रख के सर पर बंधक हमें बनाया।
जहाज़ को ले जाकर टापू में जा टिकाया।।
सामान अपना सब माँ कब्ज़े में कर लिया है।
छोटी सी कोठड़ी में हमें कैद कर लिया है।।
दिन रात हम पे हरदम हंटर बरस रहे हैं।
भूखे हैं हम व प्यासे पानी को तरस रहे हैं।।
पहले ही खाना कम था अब और भी कटौती।
रखते हैं चाकू गर्दन और मांगते फिरौती।।
इन के ज़ुल्म के किस्से ए माँ किसे सुनाऊँ।
अब डर है कुछ दिनो में बेमौत मर न जाऊं।।
रिश्वत है भारी भरकम कैसे चुकाओगी तुम।
अपने जिगर का टुकड़ा न देख पाओगी तुम।।
कोशिश हज़ार कर ले कफ़स में हो परिंदा।
जब पर ही कट चुके हों कैसे बचेगा जिन्दा।।
मुरझा चुके हैं हम तो अब औऱ न खिलेंगे।
तय हो चुका है सब हम जीवित न रह सकेंगे।।
क्यूँ अपने देश में न दौलत का देखा सपना।
मिट्टी भी सोना उगले अपना बतन तो अपना।।
स्वरचित/मौलिक
कुलभूषण व्यास
अनाडेल शिमला
?9459360564
That is the sad reality of today. ?
Jai HIND
अपना बतन तो अपना।।
जय हिंद।।