खुद प्रकाश हो
कुछ तो है कि तुम बहुत उदास हो ।
हर ख़ुशी मुमकिन नहीँ है पास हो ।।
जो भी है जीने को कम न आँकिए ।
ढ़ूँढ़िए कुछ आप में भी ख़ास हो ।।
कब तलक सर दूसरा सहलायेगा ।
क्यूँ मिले वही जो तुमको रास हो ।।
मुस्कुरा कर ज़िंदगी जी लीजिए ।
हर घड़ी क्यों ज़िंदगी में काश हो।।
कोसते हो अंधकार को ही क्यों ।
खुद के दीप और खुद प्रकाश हो।।
जीत लक्ष्य सब बहुत ••••करीब है ।
जब’अनिल’अपने हुनर की आस हो ।।
सुप्रभातम्
पं अनिल
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
अहमदनगर ,महाराष्ट्र
8968361211
युवा शक्ति हो?
करते हैं जो कुंठित प्रतिभा के बाग़ को।
उठने मत दो जातिवाद के आग को।।
करने को हिफाज़त ले ली पूरी जिम्मेदारी।
ज़हर बीज बो देश से करते ग़द्दारी।।
होश मे आकर कुँचल दो ऐसे नाग को।
उठने मत • • • • •
दीमक जैसे चाट रहे भारत की तरुणाई।
मकसद नफरत फैलाते हैं ये दंगाई।।
बजने मत दो देशद्रोह के राग को।
उठने • • • • •
षड्यंत्री हैं खोद रहे सब कूँआ खाई।
जगो नौजवां हिम्मत तुमनें जो दिखलाई।।
काट दो ऐसे हर कुत्सित दुर्भाग को।
उठने • • • • • • • • • • •
स्व विवेक मेधा का दीप अखंड जलाओ।
युवा शक्ति हो बहकावे में मत आओ।।
उज्जवल कर लो जगा लो निज सौभाग को।
उठने मत दो जातिवाद के आग को।।
पंडित अनिल
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
अहमदनगर, महाराष्ट्र
8968361211
दाना चाहिये?
भूखे जिगर को पानी दाना चाहिये।
मज़हब नहीँ बस उसको खाना चाहिये।।
ग़ुस्से को ठंडा कर दिया मुस्कान से।
हर आदमी को मुस्कुराना चाहिये।।
काग़ज़ी फूलों से घर अब सज रहे।
कभी बाग़ों से भी फूल आना चाहिये।।
महक तन का लिबास का क्या कहें।
कभी घर गुलों से महक जाना चाहिये।।
ज़ाहिर रहे जो भी रहे सच ही रहे।
जो है अनिल वो नज़र आना चाहिये।।
पंडित अनिल
स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित
अहमदनगर महाराष्ट्र
8968361211