ग़ज़ल
आह ठण्डी कोई हमारी है
सुब्ह की ओस सबको प्यारी है
रात के वस्त्र शाम पहने है,
आसमाँ से परी उतारी है
खेल ले जितना खेल सकता है,
जिन्दगी सिर्फ एक पारी है
नींद में बोलने लगे हैं लोग,
जिन्दगानी की दौड जारी है
कह नहीं सकता अब कोई ऐसा,
“ये जमीं दूर तक हमारी है”
आप इतना बता नहीं सकते,
किस तरह ये जगह तुम्हारी है
रोज हंस ले तो रोज रो भी ले,
हंसना रोना दुकानदारी है
मुस्कुरा अपने-आप पर भी “सुजान”
मुस्कुराना तो लाभकारी है
.सूबे सिहं” सुजान
Bahut sunder, adhipatywaad k khilaaf ek sarthak aawaj.
आदरणीय सुजान जी ——– बहुत अच्छी रचना है ————-
आप इतना बता नहीं सकते,
किस तरह ये जगह तुम्हारी है
रोज हंस ले तो रोज रो भी ले,
हंसना रोना दुकानदारी है———————- ये पंक्तियाँ बहुर प्रभावकारी लगी |