पथिक आगे बढ़
मर्म में पलती पिपासा
दूर होगी सब निराशा
छंट जाएगा यह कुहासा
एक पग आगे तो चल।
बढ़ पथिक तू आगे बढ़।।
राह है मुश्किल नहीं
दूर अब मंजिल नहीं
बाधाएं सब हट चलीं
छोड़ पीछे बीता कल।
बढ़ पथिक तू आगे बढ़।।
चलना ही तेरा धरम् है
रुकना न तेरा करम है
टूटना तेरा भरम है
काँटों में आगे निकल ।
बढ़ पथिक आगे ही बढ़।।
इन परिन्दों से सबक ले
सीख ले तू सरित जल से
मोड़ धारा अपने बल से
शैल ऊंचे पे जा चढ़।
बढ़ पथिक तू आगे बढ़।।
आशा तेरी हो न धूमिल
यत्न न हो पाए निष्फल
हो न तुझको कोई सम्बल
आपदा को कर विफल।
बढ़ पथिक तू आगे बढ़।।
दूर दिखता हो किनारा
छूट जाए हर सहारा
चाहे रूठे भाग्य तारा
वक्त की नोका पे चढ़।
बढ़ पथिक आगे ही बढ़।।
स्वरचित अप्रकाशित
कुलभूषण व्यास
अनाडेल शिमला
हिमाचल प्रदेश
📞9459360564
Such a motivating poem ??