कट रही है जिंदगी कागजों की तरह…..
कट रही है जिंदगी कागज की तरह
कभी लिफाफा बन कर कभी रदी बन कर
फाड़ देते है रोज़ कुछ न कुछ बहाने से मुझे
और फेंक देते है रदी समझ कर
कट रही है जिंदगी कागज की तरह
कभी लिफाफा बन कर कभी रदी बन कर
बरसात और तेज धूप से सम्भल रहा हूँ
आँधी तूफानों को झेल रहा हूँ
कब कोई आ कर लिफाफा बना ले
कब कोई आ कर रदी बना ले
कट रही है जिंदगी कागज की तरह
कभी लिफाफा बन कर कभी रदी बन कर
ऐ मौत तू इस तरहा मेरा तमाशा न देख
पास आ कर गले तो लगा ले
जीवन जो तूने दिया है कागज की तरह
अब उसको लपेट दे अखबार की तरह
ले चल तू भी बना कर लिफाफे की तरह
फेंक दे पाप पुण्य के गड्डे में रदी की तरह
कट रही है जिंदगी कागज की तरह
कभी लिफाफा बन कर कभी रदी बन कर
ॐ शांति राम भगत
किन्नौर 9816832143
उदास क्यों
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मन मैरा ये उदास क्यों है
वो आज बदहवास क्यों है
रोज़ तलाशे उसको ये बैचेन दिल
अन्दर से ये तूफान क्यों
मन मैरा उदास क्यों
रोज़ बेजुबान क्यों है
तलाश अभी भी है
उसकी एक चाहत को
रुखसत हूँ तभी मैं दुनियाँ से
बस उसकी दिदार से
मन मैरा उदास क्यों
आज ये खफा क्यों
कौन समझाये इस दिल को
आज ये वनवास क्यों है
तकरार हुई है जबसे
बैचैन ये दिल क्यों है तबसे
मन मैरा उदास क्यों है
आज ये बदहवास क्यों है
राम भगत किन्नौर
…
दर्द…
……
दिया है जो दर्द आपने सीने में
उस को ले कर हम घूमते है
तुम्हारी मीठी बातें सुन कर
सपनों में भी तुम्हीं को डुन्डते है
ना जाने हमें ये क्या हुवा है
अब तो पत्थरो से भी बातें करते है
गर्मी के इस तपते मौसम में
हम अपने आप को जला रहे है
तुम्हारी यादों को सीने में ले कर
अपने दिल को रूला रहे है
डर लगता है कही यह दर्द और ना बड़े
सीने में तो दर्द है कही दिमाग में ना पड़े
भविष्य का सौच दिल को डराता है
ना जाने ये दिल फिर भी तुम्हीं को ही क्यू चाहता है
राम भगत किन्नौर
9816832143
नारी शक्ति को प्रणाम
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जगत जननी चीत हर्नी
तुझको शत शत प्रणाम
तु घर घर की अभिमान
तुझको शत शत प्रणाम
तु माँ बहन प्रेमी और घर घर का प्यार
तुझको शत शत नमन
तेरी कृपा से सबका घर चले
समाज चले देश चले तुझको शत शत प्रणाम
तु रोष तु शांति अमन सबका
तुझको शत शत नमन
तेरी कृपा से घर द्वार उजाला
तुझको शत शत प्रणाम
तु खुद दुख की देवी रखे सबका ख़याल
तुझको शत शत प्रणाम
तेरी मुस्कान से घर आँगन चकाचौंध
तुझको शत शत प्रणाम
रखना घर संसार को यूँ ही प्यार से
तेरी ही आशीर्वाद से जिये छोटे बड़े
तुझको शत शत प्रणाम
रिश्तों को सुंदर बनाते रहे
कोई रूठ जाये मनाते रहे
रिश्तों को सुंदर बनाते रहे
कोई दूर जाये बुलाते रहे
रिश्तों में मजबूतीयां बनाते रहे
फिर नहीं मिलेगी ये इंसानी रूह
सब से मिल जुल कर रह इंसान तू
कितना वजन और उठाना है
भ्रष्टाचार और बेरोजगारी क्या कम है
हाथ से हाथ मिला सबको अपना बना
रोज उलझे है हम जिंदगी को स्वर्ग बना
हार जीत सफल असफल जिंदगी के रंग है
हर पल एक नया रंग बना
दर्द दवा दोनों को अपना बना
दूर जा कर क्या मिला है
अपनों में ही सुकून है
सुकून में अपनों को खोजो जो रूठे है
कोई रूठे तो मनाते रहे
रिश्तो को सुंदर बनाते रहे
राम भगत किन्नौर
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