बिन तेरे होली ये मनाऊँ में कैसे
अंग अपने रंग लगाऊँ में कैसे
लाल पीले नीले हरे रंग ये सब
काँपते हाथो से उड़ाऊँ में कैसे
जल रही अरमानो की दिलमे होली
फिर उमंगे दिल मे जगाऊँ में कैसे
झाँकती है चाँदनी जिन गलियों से
घर बुला कर अपने ये लाऊँ में कैसे
सुर सभी जीवन के बिखर चुके मेरे
इन लबो पे फिर से सजाऊँ में कैसे
टूटते है ख्वाब मेरे रोज़ अब भी
भूल रंजो गम मुस्कराऊँ में कैसे
मुंतिजर ही जब न रहा कोई मेरा
गैर को फिर अपना बनाऊं में कैसे
( लक्ष्मण दावानी ✍ )