आंखों में अश्को के धारे हो गये
दूर हम से सब किनारे हो गये
हमने चाहा था दिलो जाँ से जिसे
मेरे वो खुदा के प्यारे हो गये
अब न उम्मीदें रहीं ना आरजू
ख्वाब मेरे अब तुम्हारे हो गये
सामने हो कर मेरी आँखों के भी
गुम निगाहों से नजारे हो गये
ज़िन्दगी में मेरे भर कर अंधेरे
आसमाँ के वो सितारे हो गये
बद नसीबी रोकता कैसे भला
गर्दिशों में सारे तारे हो गये
चार दिन की चाँदनी थी ज़िन्दगी
अपने ही किस्मत के मारे हो गये
युँ छुड़ा कर हाथ हाथो से मेरे
अपने गैरो के सहारे हो गये
( लक्ष्मण दावानी ✍ )