खो दिया है जिसको पाना चाहता हूँ
फिर गले उस को लगाना चाहता हूँ
रात उतरा शाख पर जो फूल मेरी
अपने आँगन में सजाना चाहता हूँ
बस गई है जो महक अहसास में वो
फिर से पा कर मुस्कराना चाहता हूँ
वो तेरा इतराना , रातों को मचलना
उन लबो का वो तराना चाहता हूँ
जो चमन वीराँ है बिन खुश्बू के तेरी
उस चमन को फिर बसाना चाहता हूँ
शाखजो जख्मी है बिन गुलाब के अब
फूल फिर उस पे खिलाना चाहता हूँ
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
Kya baat hai diwani ji main apki is rachna ka jitna bolu ut
na kam hai
नावाजिशो का तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय बहुत आभार ??
Aap ka dard bayaan hota h dawani ji…dil ko Choo gayee
नावाजिशो का तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय बहुत आभार ?? ज़िन्दगी दर्द बनके रह गई आदरणीय