कीबो से उल्फत है उसने निभाई
हमारी मुहब्बत कहाँ रास आई
लगा कर मुझे इश्क का रोग उसने
दे दी उम्र भर को तड़फने जुदाई
लगा के यूँ इल्जाम सर बेवफा का
न आये कजा भी सजा है सुनाई
बहुत रोये सजदों में सरये झुकाके
कभी उसने मुझपे दया ना दिखाई
बने फिरते पागल दिवाने यूँ उनके
बहुत हो गई है मिरी जग हँसाई
बुरा हाल है दिल-ऐ-नादाँ सभांलो
देखो थक गया है दे दे कर दुहाई
( लक्ष्मण दावानी )