किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी
मिलन की तेरे मेरे वो रात होगी
खिलेगा सुमन इश्क का बागबाँ बन
नयी ज़िन्दगी की शुरूआत होगी
बनायेगे फिर आशियाँ इक नया हम
सजी चाँद तारो कि बारात होगी
झूमेंगी बहारें मिलन देख के अपना
दबी मोहब्बत की वो सौगात होगी
अदा से बिखर जायेंगे गेंसु मुख पर
हँसी मोहब्बत की वो बरसात होगी
समा लेंगे बाहों में यूँ तुम्हे अपनी
न ही लब हिलेंगे न ही बात होगी
कभी आके महफ़िल में देखो हमारी
मुहब्बत के नग्मों की बरसात होगी
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
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बहुत खूव
सुंदर!