प्रेम के कुछ पुष्प लिए फिरता हूँ
अनजाने शहरो में लोगों से अक्सर
मुस्कुरा कर यूँ ही मिला करता हूँ |
अपना न होकर भी अपना लगता हूँ
काटें हैं मंजिलो के पग पर मेरे अक्सर
पर लोगों के दिलों में प्रेम पुष्प खिला रखता हूँ |
न पाने से डरता हूँ न खोने से डरता हूँ
जिंदगी अनमोल जो मिली है जहाँ में
उसी जिंदगी में प्रेम के कुछ पुष्प लिए फिरता हूँ |
मजहब की दीवारों से बड़ी दूर
इंसानियत का इक मुकाम बना रखता हूँ
उसी में प्रेम पुष्पों को अपने सदा से संजो रखता हूँ |
प्रेम पुष्पों को ही मानवता कहता हूँ
मानवता में ही संसार को बसा रखता हूँ
मानवता के लिए अक्सर जहाँ में
मैं (हेमन्त )प्रेम के कुछ पुष्प लिए फिरता हूँ |
कवि – हेमन्त पाण्डेय (अमेठी)
9082747967