सामान?
——-
उसके माथे पर
परेशानी की लकीरे
साफ दिखाई दे रही थी,,
मैले कुचैले फटे कपड़ों से
उसकी बदनसीबी(बदन)
साफ दिखाई दे रही थी,,
कुछ तलाश रही थी शायद
नजरे इधर उधर दौड़ाती
वो बेहाल दिखाई दे रही थी,,
लोगों की गंदी भूखी
बदन पर पडीती नजरो से
बेपरवाह दिखाई दे रही थी,,
तभी एकाएक
एक चार साल का बच्चा
माँ कहते दौड़ा उसकी तरफ
और तेज दौड़ती कार के नीचे
लोग बाग दौड़े बच्चे की तरफ
बचाने कम उस बदन को निहारते
जहाँ वात्सल्य दिखाई दे रही थी,,
साँसे थम गई थी
मातृत्व निढाल हो गई थी
निस्प्राण सिर्फ लहू
बहते दिखाई दे रही थी,,
एक की आँखो में सूनापन
तो दूसरों की आँखो में
बहसी पन दिखाई दे रही थी,,
यूँ हम काम पिपासाओं को
वो हाड़ माँस का जीता जागता
तृप्ति का सामान दिखाई दे रही थी।।
क्या यही प्रकृति है
और यही हम सभी को
सदियों से सिखाई जा रही थी
वो तृप्ति का सामान दिखाई दे रही थी।।
आवेग जायसवाल
959 मुट्ठीगंज इलाहाबाद