कोख के कातिल
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पैदाइसे वो ताउम्र यूँ ही कत्ल होती रहीं,,
जब कोख से बेटी हर साल होती रही।।
तमाशबीन बने हम सब बस देखते रहें,,
और वो जिंदगी कई बेहाल खोती रहीं।।
तुम्हारे रहमो करम के दीदार पर रोती,,
बेहिसाब जुल्मो को हर हाल ढोती रही।।
कभी उफ न किया जो मिली उसे सजा,,
तेरे मौत की नींद कई साल सोती रही।।
क्या यही है नारी का जीवन बुझदिलों,,
के वो माँ तेरे बचपने को पाल रोती रही।।
पैदाइसे वो ताउम्र यूँ ही कत्ल होती रहीं,,
जब कोख से बेटी हर साल होती रही।।
आवेग जायसवाल
958 मुट्ठीगंज इलाहाबाद