…खेल कुर्सी का ….
खेल कुर्सी का
तमाशा जनता का
कुर्सी के लिये बहुत जोर
चारों और शोर
कोई स्वदेशी बोल बहुत चिल्लाया
15 लाख का सपना भी दिखाया
एक सिर के बदले 10 सिर
कुर्सी के लिये इतना जाते है गिर
भाई भतीजावाद परिवारवाद
कुर्सी के लिये आज भी वंशवाद
खेल कुर्सी का
तमाशा जनता का
कब तक ये कुर्सी हमें रुलायेगी
कितना और हमें सतायेगी
कुर्सी एक चेहरे अनेक
काले गोरे सब एक
सबने खून ही पिया
खुद जी भर कर जिया
जनता बने चाहे भिखारी
कुर्सी ने उनकी किस्मत संवारी
वाह री कुर्सी तेरी अजब लीला
तुझ पर जो भी बैठा अब तक ना हिला
बहुत देखा जोर कुर्सी का
जो बैठा वो आज शहंशाह बन गया
खेल कुर्सी का
तमाशा जनता का नमन
राम भगत किन्नौर
9816832143