बस यूँ ही कुछ और,,,,
आज फिर तुझसे उलझने की हमने ठानी है
जिन्दगी , हमने अभी हार कहाँ मानी है
और होंगे वो जो डर जांय मुकाबिल तेरे
ये अलग बात है तेरा न यहाँ सानी है
वो अलग दौर था ,पत्थर भी बडे खाये थे
फिर भी जिन्दा हूँ तो किस बात की हैरानी है
आज मैदाँ में खड़ी हूँ तो करिश्मा क्या है
आग सीने में सही ,आँख मगर पानी है
तुझको जीने का जो मकसद है ,सिर्फ साँस नहीं
मेरे किरदार को समझो तो कोई मानी है
✍✍ सुनीता लुल्ला
बेहत्तरीन
सुन्दर जी नमन
मेरे किरदार को ,
वाह क्या बात