खाब ऐसा टुटा हमारा है
अब न कोई रहा सहारा है
चाहते थे जिसे दिलो जाँ से
दूर हम से वही किनारा है
बक्श देता है वक्त ही इज्जत
वक्त से ही हर कोई हारा है
जख्म देता है जो मेरे दिल पे
फिर उसी ने हमें पुकारा है
रंग चाहत के वो छुपाकरअब
कर रहा वो हमें इशारा है
थी भरोसे पर ज़िन्दगी सौंपी
दिल पे खंज़र उसी ने मारा है
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
5/6/2017
आई – 11 पंचशील नगर
नर्मदा रोड़ ( जबलपुर म,प्र, )