मोहब्बत के दर्द से दिल चूर है
जख्म दिल का बन गया नासूर है
जो लिखे अशआर तेरे नाम के
महफ़िलो में सारे ही मशहूर है
कर सितम तू जितने भी दिलपे मेरे
हर सितम तेरा हमें मंजूर है
हिज्रे गम जीने नहीं देगा हमें
दिल मुहब्बत में तेरी मजबूर है
चाह मिलन की गजब थी तुम्हे भी
आज फिर क्यों तू नशे में चूर है
लौट कर तो आयेगे वो भी कभी
आज चाहे हमसे जितना दूर है
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
3/5/2017
आई – 11 पंचशील नगर
नर्मदा रोड़ ( जबलपुर म,प्र, )