ग़ज़ल
इश्क़ की आग पार कौन करे
जान अपनी निसार कौन करे
आप सच बोलते नहीं हैं जब
‘आपका ऐतबार कौन करे’
आप से प्यार करके ऐ जानम
धड़कनें बेकरार कौन करे
काम है ये तो बस खुदा का ही
पतझड़ों को बहार कौन करे
हो गये मतलबी मरासिम जब
फिर वफ़ा दिल से यार कौन करे
छीन ली वक्त ने सभी फुरसत
प्यार अब बेशुमार कौन करे
जब नहीं है तेरा कोई ‘आज़म’
फिर तेरा इंतजार कौन करे !
आज़म सावन खान
अच्छी ग़जल है. बहुत बहुत मुबारकबाद!