हर रोज़ दीवाली
जब खोलती है आँखें माँ , घर रोज़ दिवाली होती है।
बाबूजी का घर में आना , हर रोज़ दिवाली होती है।।
हम साथ में सब जब हों बैठे,घर गूँज ठहाकों से जाता।
फ़िर क्या कहिये घर का मंजर,वो समाँ निराली होती है।। बाबूजी ••
कभी रोब बड़े भइया का है , हम छोटों पर भी चढ़ जाता।
कभी दीदी का भी धीरे धीरे, पारा ऊपर बढ़ जाता।।
जब भाभी की रुनझुन पायल,बजती,ख़ुशहाली होती है।
बाबूजी का• • •
कभी तोतल बानीं छोटे की , कभी था दद्दा के सोते की।
कभी पड़ जाती थी मीठी सी,ना जाने किसके कोटे की।।
जो दादी स्वर लहरी साधेँ ,वो देखने वाली होती है।
बाबूजी का • • • •
🙏🏻शुभ सपरीवार दीपावली🙏🏻
पं अनिल
अहमदनगर महाराष्ट्र
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