ऐ मन! तू कब समझेगा,
ऐक और जन्म निकल चला है।
पल पल गुजर रही। जिन्दगी,
यह पल भी तो निकल चला है ।
क्या कभी सोचा तूने,
यह जन्म भी निकल चला है?
कुच्छ नहीं किया तूने अब तक,
यह जहान ही हाथ से निकल चला है
बचपन जबानी फिर बुढापा,
अब तो बुढापा भी निकल चला है।
कुछ कमा साथ जाने बाला भी,
बरना ये वक्त भी हाथ से निकल चला है।
तू भूला रोज भटकता है कहां,
रास्ता तो कहीं और निकल चला है
मन बुद्धि और आत्मा को साफ कर
बरना यह जन्म भी निकल चला है।
.डा. कुशल कटोच
लोअर बडोल दाडी
धर्मसाला( हि प)
9418079700