किस नजर से ऐ गुंडे
पहचान तेरी समाज से करूं।।
तेरी गलतियों की खातिर
क्यूँ किसी को बदनाम करूँ।।
भोंकना ही पेशा है जब तेरा,
क्यूँ फिर एतराज करूँ।।
जनता वोह भी है तुझे,
सभा बीच क्यों बखान करूं।।
लात पड़ेगी एक दिन तूझे,
फिर क्यूँ किसी से इज़हार करूं।।
पालने वाले मारते पागल कुत्तों को,
फिर क्यों किसी से जग्गु बात करूँ।।