याद ने तेरे फिर ली अंगड़ाई
बज उठी फिर गमो की शहनाई
इश्क ही जब नहीं था हमसे तो
क्यों मुहब्बत की राह दिखलाई
खाब झूठे दिखा मुहब्बत के
तोड़ कर दिल गया तू हरजाई
क्या कमी थी मेरे मुहब्बत में
जो दिया हिज्रे गम ये तन्हाई
जिस जगह हम जुदा हुए तुमसे
फिर उसी मोड़ जिन्द ले आई
जब खता ही नहीं मेरी कोई
फिर ये कैसी है हम से रूसवाई
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
30/5/2017
आई – 11 पंचशील नगर
नर्मदा रोड़ ( जबलपुर म,प्र, )
Nice one
नावाजिशो का तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय बहुत आभार