मन के रावण
अपने मन के रावण मारो,राम नज़र आयेंगे।
पीढ़ी दर पीढ़ी बिन धाम, किये ही तर जायेंगे।।
मीरा जैसा सूफ़ियाना हो , इश्क़ अगर माधव से।
डाली डाली पात पात, घनश्याम नज़र आयेंगे।।
कबिरा ने घर अपना फूँका,अनहद ब्रह्म को पाया।
भगत बड़े रैदास जी, अपने पास ही गंग बहाया।।
कलुषित मन के काट बंध,उजियारे उर आयेंगे।।
पीढ़ी • • • • •
गँणिका नें तोते को राम रटा के,राम को पाया।
अर्जुन को निज आँखों से ,भगवान नज़र ना आया।।
अंतर के पट खोल कलश में,अमृत भर जायेंगे।
पीढ़ी • • • •
शबरी के बेरों में प्रभु ने, कैसा था रस पाया।
तंदुल मित्र सुदामा के घनश्याम नें ,चाव से खाया।।
तूँ भी अनिल कपट तजि भोग ,लगा प्रभु जी खायेंगे।
पीढ़ी • • • •
सुप्रभातम्
पं अनिल
अहमदनगर महाराष्ट्र
8968361211
जय हो… बहुत खूब