बहुत कोशिशें की भूल जाने की
न आई रास खुशियाँ जमाने की
कहो न वादे वफ़ा सब फरेब था
क्या जरूरत है आँसू बहाने की
कपट है छल है या है अदा तेरी
बलाये सब है अच्छी जुल्म ढाने की
गुफ्तगू कर लेते हम गर जमाने से
तन्हा न पाते सजा दिल जलाने की
छुपा रख्खा थे यूँ तो सबसे हमने भी
मिरे चमन को नजर लग गई जमाने की
ज़ुल्मो सितम तेरे सब सर उठाये है
गई नहीं तेरी आदत आजमाने की
भुला दिये है यूँ दोनों जहाँ मैंने
फ़िक्र रही न कोई रस्म निभाने की
ये दुनिया ये महफ़िल सब बे वजह
बची न उम्मीद जब तेरे आने की
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
आई – 11 पंचशील नगर
नर्मदा रोड़ ( जबलपुर म,प्र, )
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल