ग़ज़ल
अपना अब मैं तुझे बना लूँ मन करता है
दिल में अपने तुझे छुपा लूँ मन करता है।
तेरी सौ सौ कसमें खा लूँ मन करता है
तुझको अपना मीत बना लूँ मन करता है।
दर दर भटका प्यार की खातिर मिला नहीं
अपने दिल को ही समझा लूँ मन करता है।
दूध मलाई मेवा मिश्री देखी थी सपने में
मिला है टुकड़ा रोटी खा लूँ मन करता है।
चांद सी तुम चांद के पास हो सुना है मैने
चांद को अपने पास बुला लू्ँ मन करता है।
बोझ बड़ा है दुनियाँ में अब तो सोचो
सबका बोझ मैं ही उठा लूँ मन करता है।
काम किसी के कोई न आये यह मैंने जाना
इन्साँ को इन्सान बना लूँ मन करता है।
मन मर्जी नहीं चलेगी आगे उसकी मर्जी के
उसके दर पर शीश झुका लूँ मन करता है।
लुट गये हैं इश्क मुहब्बत रहा नहीं कुछ पल्ले
तुझको ही अब गले लगा लूँ मन करता है।
बिन तेरे कुछ नहीं मेरा कोरा सफा मैं हो गया
तुझको ही मैं तुझसे चुरा लूँ मन करता है।
छंटते नहीं हैं दुख के बादल तू बता क्या करुं
रुक थोड़े आँसू और बहा लूँ मन करता है।
आशाओं के सारे बंधन टूट चुके हैं अब तो
तुझसे अब मैं नज़र हटा लूँ मन करता है।
भूख प्यास बढ़े जा रही रस्ता नज़र न आए
दिल को थोड़ा और जला लूँ मन करता है।
चिटकी कलियाँ गाते भँवरे नज़र नहीं हैं आते
फूलों संग अब मैं भी मुर्झा लूँ मन करता है।
निराश जीने मरने की कौन करे अब चिन्ता
दुखियों को अब ज़रा हंसा .लूँ मन करता है।
सुरेश भारद्वाज निराश
धौलाधार कलोनी लोअर बड़ोल
पी ओ दाड़ी धर्मशाला हिप्र
176057
मो० 9418823654
आभार आशीष जी।