टूटे खाबो का में मंजर लिख रहा हूँ
मैं गमो का इक समुन्दर लिख रहा हूँ
जो पूरी ना हो सकी उन हसरतो के
बद नसीबो का सिकंदर लिख रहा हूँ
उम्र भर हमको नाचतीं ही रहीं जो
आरजुओं को में बन्दर लिख रहा हूँ
बन के मजनू ही सदा फिरते रहे हम
इश्क में डूबा कलंदर लिख रहा हूँ
उठ रहा जो दिलमें यादो से तेरी अब
दर्द- ऐ -दिल का बवंडर लिख रहा हूँ
कर न पायेजो तिजारत मोहब्बत की
उस मुहब्बतको भयंकर लिख रहा हूँ
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
25/5/2017
आई – 11 पंचशील नगर
नर्मदा रोड़ ( जबलपुर म,प्र,)
बहुत खूब
नावाजिशो का तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय बहुत आभार
बहुत खूब…