ग़ज़ल
यह दुनियां रंग बिरंगी यारा क्या देखें
पानी नहीं था बहीं पे मारा क्या देखें।
अपने सब बेगाने हो गये न जाने क्यूँ
उम्मीद जहां थी बहीं पे हारा क्या देखें।
चाहतों पिटारा लिये हम दर दर भटके
मिला न कोई कभी सहारा क्या देखें।
दर दर अलख जगाई नह़ी कोई सुनता
सभी ने हमको ही दुत्कारा क्या देखें।
एसे उलझे दुनियाँ में क्या तुम्हें बतायें
उभर सके न कभी दोवारा क्या देखें।
क्यूँ तरसाते हो तुम मुझको रहम करो
बिगाड़ा मैनें क्या है तुम्हारा क्या देखें।
न रस्ता न मंजिल फिर भी चलते रहे
पर मिला न साथ तुम्हारा क्या देखें।
मझधार में एसे डूवे लौटी न फिर सांसें
चीख उठा मै देख किनारा क्या देखें।
क्या करें जो बक्त बुरा हो अपना
देता नहीं फिर कोई सहारा क्या देखें।
मुर्दों की बस्ती में हमने घर एक बनाया
खुदा खुदा था बहुत पुकारा क्या देखें।
चलती चक्की देख कर क्यूँ कबीरा रोया
जो नहीं पिसा खुदा को प्यारा क्या देखें।
मीठे जल की नदियाँ जा मिल़ें सागर में
पानी उसका फिर भी खारा क्या देखें।
पढ़ लिख विद्वान हो गये लोग क्या कहना
माँ-बाप न पूछे पूत नकारा क्या देखें।
निराश तुम्हारे सीने में दर्द ही बस दर्द है
यह जीवन इस पर वारा क्या देखें।
सुरेश भारद्वाज निराश
धौलाधार कलोनी लोअर बड़ोल
पी ओ दाड़ी धर्मशाला हि प्र
176057
9418823654
बहुत ही प्यारी ग़ज़ल हैं !
Bahut bahdiya gajal
बहुत सुन्दर ।बधाई भारद्धाज जी।
वाह… बहुत खूब…