..सोचा था जिंदगी बनाऊं ….
सोचा था जिंदगी बनाऊं
मैं भी प्यारा आशियाना बनाऊं
पर लगता है अब जिंदगी
जैसे मुझ से रूठ गई
क्या क्या सितम है मैंने झेलें
जीवन में है बहुत झ्मेले
सीख लिया है जीवन का जंग
अपना दर्द ही अपने संग
मैरे अपने मैरे पराये
हर पल सब मैरे है काम आये
मैरे गीत मैरे अल्फाज
मैरी आवाज़ ही अब मैरे साज
दर्द में गुन गुनाऊ
गीतों से खुद को ही मनाऊँ
यही अब जीवन है मैरी
माँ ही शक्शियत है मैरी
बीमारी ने घर बना लिया है
तकदीर ने कौन सा बदला आज लिया है
ना थकी हूँ ना थकुगी
ना झुकी हूँ ना झुकुगी ऐ मौत तेरे आगे
क्यू की अभी अपनों का साथ है
माना मैरी डोरी तेरे हाथ है
फ़िर भी मैरी जीवन मैरे हाथ है
जब तक माँ बाप अपनों का साथ है
सोचा था ..??
मैं भी …???
राम भगत
बहुत अच्छे…