मिलन की घड़ी दो घडी मिल गयी
मुझे ज़िन्दगी की ख़ुशी मिल गयी
मुद्दतो से खामोश थी जो नजर
नज़र आज हमको खिली मिल गयी
भटकता। रहा अंधेरो में सदा
तेरे इश्क से रौशनी मिल गयी
मिला और तो कुछ नहीं इश्क में
तेरे इश्क की बन्दगी मिल गयी
यूँ तो इक समुन्दर लबो पर रहा
मिले तुमसे तो तिश्नगी मिल गयी
खयालो में खोये रहे तेरे हम
नजर क्या मिली बेखुदी मिल गयी
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
23/5/2017
आई – 11 पंचशील नगर
नर्मदा रोड़ ( जबलपुर म,प्र, )
waah bhut khub miln
नावाजिशो का तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय बहुत आभार
बहुत खूब…