?ग़ज़ल
जो दूर मेरा मुझसे दिलदार नही होता
तो रोज़ मेरा जीना दुशवार नही होता
ये बात बता दे तू अल्लाह मेरे मुझको
*क्यों प्यार वफ़ा का अब इज़हार नही होता*
मिलता न अगर मुझको रस्ते में हसीं चहरा
ये तीरे नज़र दिल के यूँ पार नहीं होता
अहसास किसी का वो समझा ही नहीं जग में
वो शख़्स जिसे यारो ये प्यार नही होता
जो तोड़ दिया करते हैं आस वफ़ाओं की
उन पर तो यकीं सबको हर बार नही होता
जो साथ मिला होता अपनों का मुसीबत में
तो दिल ये मेरा इतना लाचार नहीं होता
ये दर्द नही ‘आज़म’ मिलता तुझे रोने को
उसको जो मुहब्बत से इंकार नही होता
?आज़म सावन खान ?
✍सहारनपुर ✍
बहुत खूब… वाह