वैसे तो अरमान बहुत हैं।
जीने के सामान बहुत हैं।।
शांत दिखाई देता सागर।
उसमें भी तूफान बहुत हैं।।
चमक-धमक चुँधियाए आँखें,
हो जाते अपमान बहुत हैं।।
अपने घर में हो खुशहाली।
इसमें इज्जत मान बहुत हैं।।
भारत प्यारा देश हमारा।
लोग बढ़ाते शान बहुत हैं।।
रोज़ कहीं पर लगते मेले।
और कहीं सुनसान बहुत हैं।।
समझे हो कमजोर मुझे तो।
मेरे तीर कमान बहुत हैं।।
सपने खूब सजाए जग में।
सक्षम आँखें कान बहुत हैं।।
डेरों में भी डर लगता है।
जाने क्यों बदनाम बहुत हैं।।
संसद में होते हंगामें।
जन्ता के नुकसान बहुत हैं।।
रावण की लंका ऊँची है।
और यहाँ हनुमान बहुत हैं।।
लोग यहाँ सत्संगी सारे।
बेशक बेईमान बहुत हैं।।
सीमाओं पर गोलीबारी।
सैनिक बीर जवान बहुत हैं।।
मंदिर जाकर राहत मिलती।
मंदिर में भगवान बहुत हैं।।
धर्म-धुरन्धर धन्धा करते।
दें ऊँची आजान बहुत हैं।।
आज ‘नवीन’ हुआ बैरागी।
देख लिए शमशान बहुत हैं।।
नवीन शर्मा
गुलेर-कांगड़ा
176033
?9780958743
बहुत खूब