ग़ज़ल
दिल में ही दिल की बात दबा कर चले गए I
जलता हुआ वो दीप बुझा कर चले गए II
सोचा था बातें उनसे करेंगे तो प्यार की ,
वो आए बस नजर ही मिला कर चले गए I
दर्द-ए-जिगर को हमने भुलाया कभी का था ,
फिर मुद्दतों की टीस जगा कर चले गए I
उनसे बिछुड़ के सीख रहे मुस्कराना हम ,
इक बार फिर से और रुला कर चले गए I
हम जिन्दगी के समझे थे कुछ और ही मायने ,
अपना सा क्यूँ न मुझ को बना कर चले गए I
रहवर बने रहे वो उन्हें जब तलक लगा ,
फिर रास्ते में हाथ छुड़ा कर चले गए I
गुमसुम से क्यूँ हैं बैठे ये ‘कंवर’ ने पूछा तो ,
‘झोंके से आए हम को हिला कर चले गए I’
कंवर करतार
‘शैल निकेत’ अप्पर बड़ोल दाड़ी
धर्मशाला हि .प्र.
9418185485
वाह!
बहुत खूब… वाह
Nice
नवीन जी, संजीव सूद जी और अनिल जी आप की ज़र्रानवाजी के लिए आभार आपका। नमन ।