.आदत हो गई है…….
जिन्हे आदत हो गई हो दर्द देने की
वो क्या जाने तरसना क्या होता है
वो तो देख रहे है कब मैयत पर
मेरा जनाजा निकले
कभी पढ़ लिया होता उसने दिल मेरा
तो समझाने को आज आसान होता
वे वजह वो मेरे दर्द को नासूर बना लेते है
दर्द दिल को बढ़ाने का रोज़ बहाना डुन्ड्ते है
आदत हो गई उसे दिल से खेलने की
उसे क्या पता खेल खेल में कब ये दिल् बँद हो जाये
राम भगत