मौत : एक प्रेमिका…
इलम है इस बात का कि तुम हमे चाहती हो ,
इस चाह से ही तो हम डर जाते हैं।
फैलाकर बाहें अपनी तुम तो सीने से लगाती हो
बस हम ही तेरे पास आने से कतराते हैं।
मैं तो पल-पल रंग बदलता हूँ
तुम एक रूप मै हर तरफ रहती हो।
जितना भी भाग लूँ दूर तुमसे ,एक दिन
अपनाऊंगा तुम्हें , तुम यह कहती हो।
अनसुना अनदेखा कर तुम्हें गुज़र भी जाऊं
तो पीछे से गूंजती है तुम्हारी चीखें।
बेपरवाह होकर तुम्हें भुला भी जाऊं
एक तरफा इश्क करना कोई तुमसे सीखे।
हरपल करती रहती हो पीछा,
मन को कोसता है ये प्यार तुम्हारा।
खफा हो गए हैं तेरी वफा से,
हमे कचोटता है इंतज़ार तुम्हारा।
गुस्से में तिलमिलाकर पूछा हमने ,
आखिर वो कहना क्या चाहती है?
खुशमिज़ाज सी मुस्कराकर बोली;
राज़ की एक बात बताना चाहती है ।
उसकी बातों की कशिश ने ,
मेरे मन को यूँ ही मना लिया।
रहस्य जानने के मकसद से ,
मुलाकात के लिए उसे बुला लिया।
कब आएेगी,कैसी दिखेगी ?
मन में एक बेचैनी थी।
आने की ज़रा भी आहट ना हुई,
और आ गई वो सहमी सी ।
सादगी से भरी भरी हुई सी,
सुंदरता का कोई रोब नहीं था।
परिधान में एक भी जेब नहीं थी,
धन दौलत का कोई लोभ नहीं था।
तुम्हें अपनाने को राजी हो गए,
मानों ज़िंदगी की सच्चाई मिल गई ।
कैद हो गए थे शान- औ-शौकत में,
तुम मिले मानों रिहाई मिल गई ।
मनोरमा राठौर ऊर्फ ‘मनु मायुस’??
सुन्दर रचना
Nice thought.
o wao…osm….
manu mayus….
Wah manu kyaaa baat hai….mot bhi premika ho skti hai ….its difficult to think…hatts of you dear