ग़ज़ल
धड़कनों के करार का मौसम
आ गया है बहार का मौसम
बेयकीनी है दरमियाँ बाकी
जा चुका ऐतबार का मौसम
कोई मौसम नहीं यहाँ अपना
जो है बस है उधार का मौसम
हाल बिगड़ा हुआ है भारत का
काश आये सुधार का मौसम
रास आया हमेशा इस दिल को
बस सनम के दयार का मौसम
सच कहें तो क़रीब से देखा
दो दिलों में दरार का मौसम
मुददतें हो गयीं नहीं गुजरा
एक माँ के दुलार का मौसम
हैं ,तग़ाफुल सभी की नज़रों में
ढल चुका है वक़ार का मौसम
कर “अहद” ये दुआ न ढल पाये
चाहतों के खुमार का मौसम !
✍अमित अहद✍
(सहारनपुर)