ग़ज़ल
ठोकर पे ठोकर खाई है मैंने
जिन्दगी बस यूँं ही बिताई है मैंने।
पैरों के छाल्ले जख्म हो गये
चप्पल नयी मंगबाई है मैंने।
नहीं साथ देता कोई किसी का
खुद किस्मत अपनी बनाई है मैंने।
खोने से पहले पाया भी था
चाहत कयी बार दोहरायी है मैंने।
सबकी नज़र में दगाबाज़ होकर
यारों की महफिल सजाई है मैने।
खटिया जो मुझसे टूट गयी थी
उसी पे चादर बिछाई है मैंने।
जब जब कोई दुखी होकर रोया
दास्तां उसे अपनी सुनाई है मैंने।
लगी है मुझको जब कभी ठोकर
तब तब दी दुहाई है मैने।
तरसा है निराश तेरे प्यार को जब
कसम जीने की तब खाई है मैने।
सुरेश भारद्वाज निराश
धौलाधार कलोनी, लोअर बड़ोल
पीओ दाड़ी धर्मशाला हि प्र
176057
मो० 9418823654
आभार आशीष जी।
बहुत खूब… वाह