“ढंग”ढंग बेढंग ”
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ढंग बेढंग हो गया
इन्सान ख़ुद से तंग हो गया..!
नाशवान शरीर है,
फिर भी घमंड हो गया..!
दौलल वेशुमार है
ख़ुश्क मन हो गया..!
कपड़ों की कमी नहीं
लिबास तंग हो गया..!
खूबसुरती लाजबाव है
चेहरे पर बनावटी रंग हो गया..!
अच्छे मित्रों की क़दर नहीं
झूठों का संग हो गया..!
महल अलीशान है
पर आनंद खो गया…!
अपनों की पहचान नहीं
ग़ैरों का हो गया…!
रिश्तों की क़दर नहीं
सब पैसों का हो गया..!
ज़िंदगी की कशमुकश में
जीना प्रेतों सा हो गया…..!
उत्तम सूर्यावंशी
गाँव तलाई डा. किलोड
सलुणी चंबा (हि.प.)
मो.8629082280
Email-Suryavanshi 260@gmail.com बेढंग ”
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ढंग बेढंग हो गया
इन्सान ख़ुद से तंग हो गया..!
नाशवान शरीर है,
फिर भी घमंड हो गया..!
दौलल वेशुमार है
ख़ुश्क मन हो गया..!
कपड़ों की कमी नहीं
लिबास तंग हो गया..!
खूबसुरती लाजबाव है
चेहरे पर बनावटी रंग हो गया..!
अच्छे मित्रों की क़दर नहीं
झूठों का संग हो गया..!
महल अलीशान है
पर आनंद खो गया…!
अपनों की पहचान नहीं
ग़ैरों का हो गया…!
रिश्तों की क़दर नहीं
सब पैसों का हो गया..!
ज़िंदगी की कशमुकश में
जीना प्रेतों सा हो गया…..!
उत्तम सूर्यावंशी
गाँव तलाई डा. किलोड
सलुणी चंबा (हि.प.)
मो.8629082280
Email-Suryavanshi 260@gmail.com