ग़ज़ल
नहीं है कोई उसका सानी
अपनी अपनी सबकी कहानी
काग़ज पर है दीया जलता
मेरे घर में तेल न पानी
जलती बस्ती अपनी बस्ती
न छाया न धूप सुहानी
अम्बर गरजे बिजली लसके
आ गयी देखो वरखा रानी
टप टप टप छत चुड़े है
बूढ़ी अम्मा कहां सुलानी
एसा चला तूफान रात में
सब ओर छाई वीरानी
रब से पूछूं कैसे पूछूँ
कुदरत क्यूं करे मनमानी
माटी की लो गंध उड़ी है
सब ओर है पानी पानी
ईज्जत का मोहताज नहीं मैं
चहिये मुझको मीठी वाणी
मेरा घर भर दिया तूने
तुझसा देखा कोई न दानी
ज्ञानी ध्यानी बहुतेरे देखे
उसकी महिमा कौन बखानी
पांव के छाले फटने लगे हैं
टूटी चप्पल कहां गठानी
झर झर बहते आँख से आँसू
पीर दिल की किसने जानी
धू धू करके घर जल गया
रहने दे अब क्यूँ बुझानी
टुकुर टुकुर जग को देखूँ
अपनी व्यथा किसे सुनानी
वरसों बाद फिर मिली हो
अब तो देदो कोई निशानी
उसकी खातिर दूर हो गये
उलझी उलझी अपनी कहानी
घर मेरा शमशान हो गया
अब महकी है रात की रानी
जख्म दिल के अभि हरे हैं
सूखा नहीं है आँख का पानी
चलती फिरती लाश हो गया
मिट्टी में है मिली जवानी
निराश तुझे क्यूं आई हिचकी
याद करे है प्रीत पुरानी।
सुरेश भारद्वाज निराश♨
धौलाधार कलोनी लोअर बड़ोल
पीओ दाड़ी, धर्मशाला हिप्र
176057
मो० 9418823654