ग़ज़ल-
सज सँवर अंजुमन में वो गर जाएँगे I
नूर परियों के चेहरे उतर जाएँगे II
जाँ निसार अपनी है तो उन्हीं पे सदा ,
वो कहेंगे जिधर हम उधर जाएँगे I
ऐ ! हवा मत करो ऐसी अठखेलियाँ ,
उनके चेहरे पे गेसू बिखर जाएँगे I
पासवां कितने बेदार हों हर तरफ ,
उनसे मिलने को हद से गुजर जाएँगे I
है मुहब्बत का तूफां जो दिल में भरा ,
उनकी नफ़रत के शर बे-असर जाएँगे I
बेरुखी उनकी अपनी बनी बेखुदी ,
होगी नजर-ए-इनायत सुधर जाएँगे I
पावती खत की कासिद ले आना सँभाल ,
दिल दिया हमने वो तो मुकर जाएँगे I
लड़ते लहरों से जो भी रहे हैं सदा ,
हों भँवर जितने भी पार कर जाएँगे I
लाख पहरे हों बेशक तो होते रहें ,
हम हैं परबाने ‘कंवर’ निडर जाएँगे I
डॉ . कंवर करतार
‘शैल निकेत’ अप्पर बड़ोल
धर्मशाला हि. प्र .
9418185485