सरहद
सरहदों पर जब भी,आई दोस्त की चिठ्ठी
पता देख अपना, मुस्कान चेहरे पर खिल जाती !
हर शब्द, हिम की मानिंद मानसपटल पर जम जाता
दोस्त का चेहरा, ठंडे मरुस्थल में अपना अक्स बनाता !
मीलों दूर, इंतजार रहता दोस्त की चिठ्ठी का
असीम स्नेह,विश्वास भरा रहता
जो देता रहा मुझे एक प्रेरणा, एक शक्ति
विपरीत परिस्थितियों में विजय पाने की !
बयां होता गाँव में सजी हर महफ़िल का
खेत खलियान,कॉलेज के हर किस्से का
याद है मुझे उन ढेरों गिले शिकवे शिकायतों का
दोस्त का स्नेह से कहना-शुभरात्रि ध्यान रखना अपना
अहसास बयां शब्दों से अक्सर मीलों दूर आँख भी नम होती
एक अधूरी तड़प, दोस्तों की जागृत होती
बालपन में इच्छा होती क्यों न दोस्तों के साथ जिन्दगी जी जाये
दिल की गहराई से लिखे शब्द फ़र्ज़ के नये मायने समझाते
कुछ इस तरह सरहदों पर हम और मुस्तैद हो जाते
ये खुला अम्बर, ठंडा मरुस्थल, तपता रेगिस्तान, असम के खूंखार जंगल तो बहरूपिया कश्मीर की वादियाँ, सर्द रातें ये कायनात के चंद हिस्से गवाह है मेरे दोस्त की चिठियों के
मिलते हैं दोस्त अब संचार क्रांति के नवीनतम दौर में
सामने चेहरा, पर शब्द अहसास ब्यान नही करते
नये अविष्कार, नये साधन, नये लक्ष्य और दायित्वों ने
इन्सान को भावना विहीन रोबोट बना दिया
जो एक निश्चित परिक्रमण पथ पर अग्रसर है !
सनद की तरह संभालकर रखे है खत दोस्त के
व्यस्तता की आंधियां रिश्तों को जब सर्द करती है
भागदौड़ जिन्दगी की,जब आइना दिखाती है
दो चार शब्द ख़त के जेहन में उतार लेता हूँ
कुछ इस तरह चंद अनमोल शब्दों से
कई बिखरते रिश्तों को संभाल लेता हूँ…
रोशन चौहान
बहुत खूब.. जय हिंद
Bahut hi khoob likha hai mere dost zindagi mein hamesha isi tarah chamakte raho….. Jai Durge…!