पलकों के द्वार ?
खो गया कहीं सपनों का राजकुमार ।
ख्वाबों में भी आता नहीं पलकों के द्वार।।
दादी सुनाती थी परियों के क़िस्से ।
घोड़े पे राजकुँवर बहना के हिस्से।।
लिपट लिये हमने जो पाया था प्यार ।
ख्वाबों • • •
टूट गये अब वो घँरौदे पुराने ।
बच्चे भी अब तो जनमते सयाने।।
आँखों में जिद्दीपन लेके खुमार ।
ख्वाबों • • •
दरखत दिखते नहीं कहीं कदंबों के।
खबरें भी आती हैं लूटमार दंगो के।।
सावन के झूले नहीं रिमझिम फुहार।
ख्वाबों •••
राम जाने स्वर्णिम चिरइया की बातें।
अब तो क़तल हुवी जाती जज्बातें।।
कौन देखे आँसू लरज़ते हज़ार।
ख्वाबों • • •
? सुप्रभातम् ?
? पं अनिल ?
अहमदनगर महाराष्ट्र
? 8968361211