ग़ज़ल
सावनी बौछार हो इक ग़म भुलाने के लिए
आम का भी पेड़ हो, झूला झुलाने के लिए
रात भर के जागरण से टूटती इस देह को
इक ज़रा सी है उफ़क बस गुनगुनाने के लिए
जम गया सीने पे जो पत्थर ग़मों का दोस्तो
आप का हो इक इशारा, ही हिलाने के लिए
उस गली की राह हम हरगिज़ कभी जाते नहीं
आप की खुशबू न होती, गर लुभाने के लिए
चाँद की बस बात ही थी, और भी कुछ था वहाँ
मिल गया उनको बहाना, छत पे आने के लिए
जब कभी नग़्मासरा होना तो होना सोचकर
रोज़ तो आते नहीं हम दाद पाने के लिए
लग़्ज़िशें अपनी सँभालें, अब बुढ़ापा आ गया
अब नहीं है वक्त शैली, लड़खड़ाने के लिए
आशा शैली
परिचय
माता आशा शैली जी बहुत ही प्रसिद्ध कवयित्री हैं। मुख्यतः झारखंड से सम्बंधित है। हिमाचल के साथ इनका गहरा रिश्ता रहा है। बहुत सी किताबें ओर कई पत्रिकाओं में इनकी कविताएं प्रकाशित होती हैं।
बहुत खूब….
सुन्दर सृजन………नमन