आरक्षण
भीमराव जी ने कुछ क्षण भर,
मुठी भर,
दिनों के लिये आरक्षण को जन्म दिया..
और आरक्षण का वरदान, अविकसित जनसमुदाय को,
दस बर्षो तक दिया…
पर नेताओं की चाल को,
पार्टियों की आल को,
बो ना समझ पाए,
सियारों की इस भाल को,
दे आरक्षण क्षण के लिये,
वो तो महात्मा चले गए…
दिया सिर्फ,
दस बर्षो तक यह मैनें ..
सविंधान में वो कह गए…
पर, अपनो ने ही उन्हे,
कुछ धोखा ऐसा दे दिया..
आरक्षण के नाम- भाव का सार,
सब कुछ ही बदल दिया…
अपनी स्वार्थ सिधि के लिए,
नेताओं का चोला पहने बो भेडिये..
चालाकी से, मक्कारी से,
देश की अवाम के साथ खेल लिए..
और हर बार आरक्षण के नाम पर,
सत्ता हासिल कर लिये..
ये आरक्षण व्यवस्था अगर रही यूँ ही इस देश में…
तो कभी ना होगा विकास स्वदेश में..
आए कई,कई चले गये,
आरक्षण की माला फेरते रहे,
जनता को बो गुमराह करते रहे..
जनता को बो ठगते रहे..
कहता है “राहुल” सुन लो भारत के रखवालो ….
देश का सच मे विकास चाहते हो तो ..
इस आरक्षण के कीडे को मार डालो..
इस आरक्षण के कीडे को मार डालो..
राहुल सुन्दन.
चुवाडी |
बहुत खूब,
आरक्षण से डर रहे हैं सब,
जिसको मिला वोह भी ,
जिसे न मिला वोह भी,
फायदा हुआ न किसी को,
रंग चढ़ा हेरा फेरी की फर्द को।।
नफरत बढ़ी समुदाओं में,
फायदे की चाबी बनाई नेताओं ने,
राजनीति चमका रहे बैठे पद में,
क्युँ बाँट दिया इन्सान को इस कदर,
जब बाँटा नहीं है रव ने।।
आरक्षण के राक्षस ने ,
दुर्गंद फैलाई है सब में,
सौ बार सावुन मल कर देखा
जाने का नाम नहीं लेती है आज,
समाई ऐसी मानव की रग रग में।।
हो हल्ला हुआ कई बार,
आरक्षण घटा नहीं बढ़ा है,
बस रेल की सीट से लेकर देखिये,
राजनीति के पंच के पद में,
फंसता देखा है न्याय इसी छल में।।
जो करते हैं विरोध वोह बतायें,
किस आरक्षण को कहाँ से हटायें,
हर ओर आरक्षण मुंह खोल लेता है ,
कौन सा क्षेत्र बचा है अब,
आया न हो जो इसकी जद में।।
जिनको मिला है आरक्षण,
वोह भी न खुशी मनायें,
आरक्षित सीटों पर गैर आरक्षित को,
नौकरियाँ देते-करते हमने देखा है,
पढ़ा होगा यह भी आप सब ने।।
कुछ नहीं यह नेताओं का खेल है,
लड़ती रहे जनता यही मूल भेद है
तोड़ मरोड़ कर चेहतों को लाभ मिले,
नालायकों इंजीनियर डाक्टर बनाने का,
देश को खोखला करने मात्र खेल है।।