कुदरत ??
बेदिली अपनों से गैरों से मुहब्बत ।
खूब लोगों ने बना ली है ये फ़ितरत ।।
साफ़गोई अब कहीं दिखता नहीं ।
ये किसी बाज़ार में बिकता नहीं ।।
आसमाँ में घर बनाने की है हसरत ।
खूब लोगों•••••
हाथ दो ही हैं तेरे लेनें को बंदे ।
पाल रक्खे हैं बहुत गफ़लत के धंधे ।।
देनें को रखती हज़ारों हाथ कुदरत ।।
खूब•••
जोड़ ले तूने बढ़ाई कितनी दौलत ।
क्या पता पाये न पाये और मोहलत ।।
जादूगर वो ले रहा हर पल ख़बरत ।।
खूब••••
दिन फिरेंगे फ़िर अनिल रख हौसला ।
वो मदारी छिप करे है फ़ैसला ।।
उसके दिल न जगह पाती कोई नफ़रत।
खूब••••
? सुप्रभातम् ?
? पं अनिल ?
अहमदनगर महाराष्ट्र
बहुत अच्छे..