सब प्यार मुहब्बत का कसूर है
सब प्यार मूह्ब्त का कसूर है
तभी तो दर्द और जलन है
तभी तो रुसवाई और बेवफ़ाई है
तभी तो मीठा और कठोर शब्द है
प्यार है तो जन्नत है
प्यार है तो जमी आसमां एक है
प्यार आदि भी अंत नही
प्यार आज भी कल भी
सब प्यार मुहब्बत का कसूर है
तभी तो दर्द और जलन है
प्यार है तो रामायण गीता
कुरान बाइबल सब एक है
प्यार हो जहाँ में तो
जात धर्म मंदिर मस्जिद की क्या ज़रूरत
सारा जहाँ इंसानियत होती
और आज इंसानियत की पूजा होती
इंसानियत की मंदिर मस्जिद होती
हिंसा लूटमार हत्या बलात्कार ना होते
सब प्यार मुहब्बत का कसूर है
राम भगत
बहुत अच्छे