ग़ज़ल
ग़म दिल से यूँ हटाया न गया ।
चाह कर तुम्हे भुलाया न गया ।।
बिन गुनाह कबूल की हर सजा ।
झुका सर फिर उठाया न गया ।।
रूठ जाने का डर रहा दिल में ।
तेरा सच ज़हाँ को बताया न गया ।।
सुदेश दीक्षित
हो चुका हूँ दूर कब का मै खुद से ।
इश्क तुझ से ही छुपाया न गया ।।
पार कर दी हदें जनून मे “दीक्षित”ने ।
बादा तुझसे ही निभाया न गया ।।
बहुत खूब