बिशम्बर नवीन
मुक्कै जे नीं तेरी-मेरी ,
के तरनीं ऐं बेड़ी मेरी ?
माणुसता जो दुसमण इत्थू ,
अज्ज खड़ोत्ते घेरी-घेरी l
टाट गज़ूल़ी लेक्खा दुनियां ,
जा तड़फांदी हेरी-हेरी l
उन्नी के रखुआली करनीं ,
चाल चलै जो ढेरी-ढेरी ?
विजल़ी कड़कै बद्दल़ गड़कै ,
लगी डराणा न्हेरी-न्हेरी l
लोक “नवीन” चलाक्की करदे ,
नज़र मलांदे फेरी-फेरी ll
बिशम्बर नवीन
०९४१८८४६७७३
काव्य-कुंज जसूर-१७६२०१,
जिला कांगड़ा (हिमाचल) l
बहुत खूब…